गुरुवार, 22 सितंबर 2022

विवेक चूड़ामणि : मूढ़ (मूर्ख) कौन हैं ?

 




नमस्कार !

विवेक चूड़ामणि भगवान श्रीशङ्कराचार्य के ग्रंथो में एक प्रधान ग्रन्थ है | 

इस सूत्र को पढ़ने के पश्चात् मुझे समझ आया कि यह सत्य है कि मनुष्य देह पाना एक सौभाग्य की बात है परन्तु पुरुषत्व से क्या अर्थ है यहाँ पर ? प्रथम बार इस सूत्र को पढ़कर पुरुषत्व का अर्थ समझ आया पुरुष से | लेकिन फिर मन में विचार आया कि क्या ईश्वर भी स्री और पुरुष में भेद करता है ?

आत्मा ने उत्तर दिया ऐसा नहीं हो सकता, ईश्वर तो सजीव और निर्जीव मे भी भेद नहीं करता वह तो सबमे विराजमान है तो स्री और पुरुष में कैसे भेद कर सकता है ?

खुद से अन्वेषण करने पर पता चला कि यहाँ बात पुरुष से नहीं पुरुषत्व की हो रही है | और पुरुषत्व को मैं इतना समझ पायी हूँ कि यह गुण/भाव है जो किसी मनुष्य के विवेक, कर्तव्य, पौरुष (वीर होने की अवस्था), निर्भयता, ज्ञान और साहस, सजगता को दर्शाता हैं | पुरुषत्व के साथ साथ मैं स्त्रीत्व को भी जाना कि स्त्रीत्व भी गुण/भाव हैं जो किसी मनुष्य में स्नेह, प्रेम, दया, ममता, त्याग, कोमलता और सहनशीलता को दर्शाता हैं | 

सद्गुरु भी कहते हैं कि पुरुषत्व और स्त्रीत्व से मेरा अर्थ पुरुष और स्त्री से नहीं हैं | तो हम कह सकते है कि जीवनयापन और आत्मा से प्रेरित उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए और इस जीवन को सुन्दर बनाने के लिए हर एक मानव के भीतर पुरुषत्व और स्त्रीत्व का संतुलन होना चाहिए | मेरा ऐसा मानना है कि अगर मनुष्य इन दोनों तत्वों को संतुलित करके जीवन जीएगा तभी मुक्त हो पायेगा | क्यूंकि सद्गुरु कहते है कि शिव को हम परम पुरुष इसलिए कहते है क्यूंकि उनमे भरपूर पुरुषत्व के साथ साथ भरपूर प्रेम और करुणा भी है | 

अब यही यह सूत्र ज्ञान दे रहा है कि मनुष्य शरीर पाने के पश्चात्,  पुरुषत्व के पाने के पश्चात भी अगर, वह अपने ही स्वार्थ में लीन रहता है उससे अधिक मूढ़ कौन हैं ? तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य जन्म लेने के पश्चात् भी ज्ञान पाने का इच्छुक नहीं, और अपनी मुक्ति का इच्छुक नहीं है, वह अपने आप को खत्म कर रहा है | उससे बड़ा मूर्ख और कोई नहीं | 

मैं कोई ज्ञानी नहीं हूँ बस सत्य की खोज में हूँ, इसलिए कभी कभी विचार शब्दो का रूप ले लेते है | अगर इस सूत्र को समझने में मुझसे कोई त्रुटि हुई तो क्षमा कीजियेगा | 

ॐ नम: शिवाय 

डॉ पूर्णिमा घई 


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