शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

विवेक चूड़ामणि : क्या पूजा पाठ और शुभ कर्म करने से मुक्ति मिलती हैं ?



नमस्कार !

विवेक चूड़ामणि भगवान श्रीशङ्कराचार्य के ग्रंथो में एक प्रधान ग्रन्थ है | 

हमे बाल्यावस्था से यही सिखाया जाता हैं कि पूजा-पाठ, शुभ कर्म करने चाहिए ताकि ईश्वर हमे जीवन में शुभ फल प्रदान करे | मतलब यह समझा दिया जाता है कि जीवन उस समय का नाम है जिसमे हमे अच्छे कर्म करने है और उनके अच्छे फल भोगने की इच्छा रखनी है | उससे उत्तम और कुछ है ही नहीं | तो यह सन्दर्भ उनके लिए फिर भी उत्तम है जो ईश्वर में पूर्ण निष्ठा रखते है और ऐसे कर्म करते है जो ईश्वर कि नज़र में उत्तम है | ऐसा करने से कम से कम वो अपने साथ साथ समाज को भी ऊंचाई पर ले जा रहे है | मेरा ऐसा अनुभव है कि ऐसे इंसान हर परिस्थति में उत्तम कर्म करते ही रहते है, क्यूंकि वह कभी ईश्वर से उम्मीद नहीं छोड़ते | इसका अर्थ है फल की इच्छा उनमे शेष है |  

परन्तु समस्या तब आती है जब इंसान के लिए अच्छे और सही कर्म का मतलब होता हैं, वह कर्म जिसे समाज न की ईश्वर उत्तम मानता हो | और फल भी उसे वही चाहिए जिसकी वो इच्छा रखता हो | ऐसा फल मिल जाता है तो कहता हैं कि हमारे शुभ कर्मों का फल हैं और अगर नहीं मिलता तो बस जीवन में दुःखी हो जाता हैं | अधिकतर इंसानो का जीवन बस यही तक हैं | भौतिकता के तल पर ही जी कर, सुख दुःख भोग कर, इस दुनिया से चले जाते है और इस मनुष्य जीवन का महत्व नहीं समझ पाते | मेरा अनुभव यह है कि ऐसे इंसानो से ही अधिकतर दूसरे इंसान जीवन जीने के तरीके की प्रेरणा लेते हैं |

इस संसार में सबसे विवेकशील प्राणी होता है मनुष्य , परन्तु सोचिये कितने दुःख भोग रहा है | शरीर के साथ साथ मानसिक विकार भी बढ़ने लगे है | हालत यह है कि अब बच्चो में भी मानसिक विकार बढ़ने लगे है | तो इसमें त्रुटि किसकी है? हमारी सामाजिक व्यवस्थाओ कि जिसमे हमे जीवन को जीने और जीवन के उदेश्य को जानने की शिक्षा भली-भाती दी ही नहीं जाती | 

तो विवेक चूड़ामणि के सूत्रों का अध्ययन करने के बाद मुझे पता चला कि मनुष्य का जीवन "मुक्ति" पाने के लिए होता हैं न कि भोग करने के लिए | और जो इस मार्ग पर नहीं चलता उस मनुष्य से अधिक मूढ़ और कोई नहीं हैं | तो प्रश्न यह है कि मुक्ति कैसे मिलती है? 

जो इस सूत्र में समझाया गया है कि शास्त्रों का अध्ययन करके प्रवचन करने से, देवताओ का पूजन-कीर्तन और शुभ कर्म  करने से मुक्ति नहीं मिलती हैं | मुक्ति के लिए "स्वय का ज्ञान" होना आवश्यक हैं | 

सदा के लिए "दुःख" और "भय" से रिक्त हो जाना ही मुक्ति हैं | न जाने क्यों इतना विवेकशील होने पर भी इंसान वह सब पाना चाहता है जिससे दुःख और भय बढ़ता है लेकिन उस शक्ति से नहीं मिलना चाहता जिससे दुःख और भय सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं | मिलना तो दूर की बात है उससे मिलने के मार्ग पर चलने की सोचता भी नहीं | 

अभी आगे के सूत्रों का अध्यन करना शेष है लेकिन क्या इस बिंदु पर मैं यह कह सकती हूँ कि मुक्ति के लिए इंसान को सत बढ़ाना होता हैं उसके लिए स्वाध्याय करना होता है, किसी ज्ञानी पुरुष के संपर्क में होना होता है |    तत्पश्चात संकल्प करके और अपने ऊपर नियंत्रण करते हुए, जो सीखा उसको जीवन में उतारकर जीना होता है, ताकि हम भीतर की ओर मुड़ पाये | और भीतर से अपने आप को शांत कर पाए | 

मेरी सत्य को जानने की यात्रा जारी है कोई त्रुटि हुई तो क्षमा कीजियेगा | 

ॐ नम: शिवाय 

डॉ पूर्णिमा घई 


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गुरुवार, 22 सितंबर 2022

विवेक चूड़ामणि : मूढ़ (मूर्ख) कौन हैं ?

 




नमस्कार !

विवेक चूड़ामणि भगवान श्रीशङ्कराचार्य के ग्रंथो में एक प्रधान ग्रन्थ है | 

इस सूत्र को पढ़ने के पश्चात् मुझे समझ आया कि यह सत्य है कि मनुष्य देह पाना एक सौभाग्य की बात है परन्तु पुरुषत्व से क्या अर्थ है यहाँ पर ? प्रथम बार इस सूत्र को पढ़कर पुरुषत्व का अर्थ समझ आया पुरुष से | लेकिन फिर मन में विचार आया कि क्या ईश्वर भी स्री और पुरुष में भेद करता है ?

आत्मा ने उत्तर दिया ऐसा नहीं हो सकता, ईश्वर तो सजीव और निर्जीव मे भी भेद नहीं करता वह तो सबमे विराजमान है तो स्री और पुरुष में कैसे भेद कर सकता है ?

खुद से अन्वेषण करने पर पता चला कि यहाँ बात पुरुष से नहीं पुरुषत्व की हो रही है | और पुरुषत्व को मैं इतना समझ पायी हूँ कि यह गुण/भाव है जो किसी मनुष्य के विवेक, कर्तव्य, पौरुष (वीर होने की अवस्था), निर्भयता, ज्ञान और साहस, सजगता को दर्शाता हैं | पुरुषत्व के साथ साथ मैं स्त्रीत्व को भी जाना कि स्त्रीत्व भी गुण/भाव हैं जो किसी मनुष्य में स्नेह, प्रेम, दया, ममता, त्याग, कोमलता और सहनशीलता को दर्शाता हैं | 

सद्गुरु भी कहते हैं कि पुरुषत्व और स्त्रीत्व से मेरा अर्थ पुरुष और स्त्री से नहीं हैं | तो हम कह सकते है कि जीवनयापन और आत्मा से प्रेरित उद्देश्यपूर्ण जीवन के लिए और इस जीवन को सुन्दर बनाने के लिए हर एक मानव के भीतर पुरुषत्व और स्त्रीत्व का संतुलन होना चाहिए | मेरा ऐसा मानना है कि अगर मनुष्य इन दोनों तत्वों को संतुलित करके जीवन जीएगा तभी मुक्त हो पायेगा | क्यूंकि सद्गुरु कहते है कि शिव को हम परम पुरुष इसलिए कहते है क्यूंकि उनमे भरपूर पुरुषत्व के साथ साथ भरपूर प्रेम और करुणा भी है | 

अब यही यह सूत्र ज्ञान दे रहा है कि मनुष्य शरीर पाने के पश्चात्,  पुरुषत्व के पाने के पश्चात भी अगर, वह अपने ही स्वार्थ में लीन रहता है उससे अधिक मूढ़ कौन हैं ? तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य जन्म लेने के पश्चात् भी ज्ञान पाने का इच्छुक नहीं, और अपनी मुक्ति का इच्छुक नहीं है, वह अपने आप को खत्म कर रहा है | उससे बड़ा मूर्ख और कोई नहीं | 

मैं कोई ज्ञानी नहीं हूँ बस सत्य की खोज में हूँ, इसलिए कभी कभी विचार शब्दो का रूप ले लेते है | अगर इस सूत्र को समझने में मुझसे कोई त्रुटि हुई तो क्षमा कीजियेगा | 

ॐ नम: शिवाय 

डॉ पूर्णिमा घई 


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रविवार, 21 अगस्त 2022

विवेक चूड़ामणि: भगवत कृपा क्या है ?

 



नमस्कार !

विवेक चूड़ामणि भगवान श्रीशङ्कराचार्य के ग्रंथो में एक प्रधान ग्रन्थ है | 

इस सूत्र को जितना मेरी बुद्धि समझ पायी उसका उल्लेख किया है | मै कोई ज्ञानी नहीं हूँ बस सत्य को जानने की जिज्ञासा रखती हूँ |  

आशा करती हूँ आप सब सकुशल होंगे | जैसा आपने ऊपर पढ़ा है कि ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य तत्त्व, मुमुक्षत्वं, और महान पुरुषो का साथ हमे मिल ही नहीं सकते | तीनो को पाना बहुत कठिन है | 

जब मैंने यह पढ़ा तो विचार आया अगर इनको पाना इतना दुर्लभ है तो मै भाग्यशाली हूँ यानी मुझपर ईश्वर की कृपा है की मै मनुष्यत्व से परिपूर्ण हूँ | लेकिन फिर एक विचार और आया की क्या मनुष्य तत्त्व का मतलब मनुष्य शरीर पाने से है ? तब ज्ञान हुआ की मनुष्य तत्त्व का वास्तविक अर्थ है मनुष्यो के लिए आवश्यक और उपयुक्त गुणों के होने की अवस्था या भाव | माने मनुष्य का हृदय मानवता से परिपुर्ण होना | और मानवता का अर्थ तो हम सब जानते है | इसका मतलब ईश्वर ने इस मनुष्य को ही मानव जाति, अन्य जीवो और इस ग्रह की जिम्मेदारी दी है | परन्तु  सोचिये एक तो मनुष्यत्व इतना दुर्लभ है और मिलने के बाद भी यदि हम वो कार्य नहीं कर रहे है जिसके लिए ईश्वर ने हमे भेजा तो क्या हम सच में ईश्वर को पूज रहे है ?

अब बात करते है मुमुक्षत्वं (मुक्त होने की इच्छा) की | अब आप पूछेंगे किससे मुक्त होना है ? तो मुक्त होना है हमे अपने भय, मोह और जन्म मरण से | हमारे दुखो का कारण ही भय, मोह और हमारे बुरे विचार है | और सत्य यह है कि मनुष्य जीवन ही हमे भय और मोह से दूर करेगा, हमारी मृत्यु नहीं | जब हम इस बात को समझ जाते है तब हम इस जीवन की गहराई को समझ पाते है | और समझ पाते है कि इसका आरंभ होगा तो हमारे द्वारा ही | तब ही हमारी आध्यात्मिक यात्रा शुरू होती है | 

मनुष्य इस बहुमूल्य जीवन को चिंता में बिताये या चिंतन में यह है तो उसी के हाथ में | सत्य यह है कि अज्ञान और भौतिकता में फॅसे रहने से पीड़ा अधिक होती है | इसलिए मनुष्य को प्र्त्येक क्षण चिंतन करते रहना चाहिए | तो शुरुवात अभी से कीजिये | और आध्यात्मिक मार्ग पर चलिये और जीवन का एक मात्र उद्देश्य पाइये जो है मुक्ति | 

अब बात करते है महापुरुषों का साथ | देखिये आपके माता पिता ने आपको सीख दी होगी की अपनी संगति सदा अच्छी रखना | सदा उत्तरदायी और सदाचारी मित्र बनाना | तो सोचिये जब सदाचारी और उत्तरदायी मित्रों के साथ से हमारा जीवन सरल बन सकता है तो सोचिये महापुरुषों का साथ तो हमे ज्ञानमय कर सकता है और हम इस संसार में रहते हुए भी अध्यात्म की मार्ग पर चल मुक्ति पा सकते है |  

मेरा ऐसा मानना है कि हमारे जीवन का कोई ना कोई उद्देश्य है इसलिए ईश्वर के दिये इस मनुष्य रूपी शरीर और जीवन का आदर कीजिये | तत्पचात अगर आपकी प्रकृति सात्विक भी है तो उसका घमंड नहीं उसे ईश्वर का वरदान समझिये | अपने भीतर झांक उस उद्देश्य को खोज उसको पूर्ण कीजिये और मुक्ति की और बढ़िये | 

इसी के साथ मेरा ऐसा मानना है कि जीवन में हमे कृतज्ञता जरूर दिखानी चाहिए क्यूंकि कृतज्ञता दिखाने से जीवन में संतोष और आनन्द की वृद्धि होती है, और हमारा सत्व बढ़ाता है | संतोष और आनन्द का भाव मुक्ति के मार्ग पर चलने के लिए बहुत सहायक होता है | जब भी आपको दुःख की अनुभूति हो तो समझ जाइये ईश्वर आपको अपनी छाया में आने को कह रहा है इसलिए चिंतन करना शुरू कर दीजिये और अध्यात्म से जोड़िये | शायद यही कारण है कि सच्चे लोगो को ज्यादा दुःख होता है क्यूंकि ईश्वर बार बार उन्हें पुकार रहा है और वो सुन नहीं पा रहे | कही तो त्रुटि हमसे हो रही है जिसे वो सही करने को कह रहा है और इसका पता तो हमे चिंतन करने से ही मिलेगा | विश्वास कीजिये वो कभी आपको अकेला नहीं छोड़ता | हम से अधिक वो हम पर दृष्टी रखता है |  


ॐ नमः शिवाय 

डॉ पूर्णिमा घई   



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मंगलवार, 2 अगस्त 2022

अध्यात्मिक सुविचार






नियत का अर्थ हम सब जानते है आम भाषा में कि "सोच" या "विचार "  
लेकिन एक दिन मन में प्रश्न आया कि हमारी सोच की जड़ कहा है ? मतलब ये कहाँ से उत्पन होती है, तो जबाब आया कि हमारी मन की स्थिति कैसी है ? मतलब हमारे कैसे भाव है ? इन्ही भावों से हमारी सोच बनती है और जैसी सोच बनती है वैसे ही कर्म हम करते है और उन्हीं किये हुए कर्मों से हमारा जीवन बनता है |और जीवन में तो सब ही आ जाता है, जैसे हमारा स्थूल और सूक्ष्म शरीर, हमारे रिश्ते, हमारी जीवन शैली, ईश्वर और प्रकृति के प्रति समर्पण  

तो देखा जाए तो हमारी ज्ञानेंद्रिय से उत्पन हुए  या कई जन्मो के इकठे हुए हमारे संस्कार से उत्पन हुए भाव ही हमारी सोच बनाकर हमारा जीवन चला रहे है | इसलिए अगर हमारे भाव सत्वगुणी नहीं है तो, ये हमारे हृदय में विराजमान ईश्वर को काले बादलो की भाती घेर लेते है | और हम दुर्भाग्य की और अग्रसर हो जाते है | लेकिन अगर हमारे भाव सत्वगुणी है तो हम ईश्वर के समीप पहुँच अपने सौभाग्य के रचियता बनते है | 

इसलिए हमे हमारा जीवन सत्वगुण के अभाव में आये भाव रुपी काले बादलो को हटाने की कोशिश में निकलना शुरू कर देना चाहिये तभी हम कह सकते है कि ईश्वर हमारा जीवन चला रहा है और वो ही एक इंसान के लिए सौभाग्य की बात है |  

जीवन को अभी में इतना ही समझ पायी हूँ | 


डॉ. पूर्णिमा घई


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बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

प्रकृति से भी रिश्ता निभाना है!

Hi Beautiful & Peaceful Souls,

ईश्वर ने मनुष्य को इसलिए बनाया था ताकि वो केवल अपना ही नहीं बल्कि ईश्वर की बनाई सृष्टि का ख्याल रख सके। लेकिन आज मुझे अगर सृष्टि के किसी प्राणी से सबसे ज्यादा डर लगता है तो वो है मनुष्य।

एक समय था जब मनुष्य यज्ञ करता था ताकि वृष्टि उत्पन हो और उस वृष्टि से शुद्ध जल उत्पन हो और उस जल से नदियां मार्गी हो सके। शुद्ध घृत और हवन पदार्थ के गुणों से युक्त शुद्ध जल सूर्य कि किरणों के संपर्क में आकर ओर शुद्ध हो जाता है। इसी जल को पीकर गाऊ माता दिव्य गुणों से युक्त शुद्ध दूध दे सके। और इसी औषिधि रूपी जल से खेतों में उगे हुए अन्न को खाकर हम निरोगी रहे।

इसलिए हमारी प्राचीन सभ्यता में नदियों को पूजा जाता था। लेकिन आज हम क्या कर रहे है। यज्ञ तो दूर की बात हम नदियों में कचरा डालकर उन्हें और दूषित कर रहे है। तो कैसे सोच सकते है कि हमारे सन्तानो का भविष्य सुंदर है।

मेरा ऐसा मानना है कि covid एक biological weapon है। इस समय चाहे धनवान हो या गरीब सबकी एक ही विडम्बना है क्यूंकि कोई इलाज नहीं है। सोचिए नदियों के इस गंदे पानी को पीकर आने वाले समय में क्या होगा? महंगे से महंगा RO लगवाने से तो बात नहीं बनती। आप ने तो RO लगवा लिया लेकिन गरीब और अन्य जीव जंतु का क्या? इसलिए जितना हो सके हमे eco-friendly products की तरफ ध्यान देना चाहिए। और यज्ञ जरूर करना चाहिए जितना भी हमसे हो सके।

वेदों में भी लिखा है कि जो मनुष्य यज्ञ करता है वो ही ईश्वर का सच्चा पुत्र है। ईश्वर ने हमें सबसे पहले प्रकृति से रिश्ता निभाने को कहा है। और इस प्रकृति का ख्याल रखने को कहा है। ये सब करने में अगर हम थोड़ा भी योगदान नहीं दे पाए तो काहे के इंसान।

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

तमोगुण और तमोगुणी मनुष्य विशुद्ध मनुस्मृति अनुसार|

 Hi Beautiful & Peaceful Souls,

सत्वगुण, रजोगुण और सत्वगुणी, रजोगुणी मनुष्य के लक्षण जानने के बाद (https://satvagunavidhushi.blogspot.com/2020/10/blog-post_12.html) (https://satvagunavidhushi.blogspot.com/2020/10/blog-post_14.html) आज हम तमोगुण और तमोगुणी मनुष्य के बारे में जानेगे, जो इस प्रकार हैं|  

यत्तु स्यान्मोहसंयुक्तमव्यक्तं विषयात्मकम | 

अप्रतर्क्यंविज्ञेयं तमस्तदुपधारयेत || 

लोभः स्वप्नोंSधृतिः क्रौर्यं नास्तिक्यं भिन्न वृतित्ता | 

याचिष्णुता प्रमादश्च तामसं गुणलक्षणम || 

यत्कर्म कृत्वा कुर्वश्च करिष्यंश्चैव लज्जति | 

तज्ज्ञेयं विदुषा सर्वं तामसं गुणलक्षणम ||   

आत्मा में तमोगुण प्रधानता की पहचान- जो मोहयुक्त माने सांसारिक पदार्थो में फसा हुआ हो, विवेक का न होना माने भले बुरे की पहचान न होना, इन्द्रियों के वश में हो, तर्क वितर्क से परे हो, और  विचारो में स्पष्ट न हो, लालच की अधिकता, अत्यधिक आलस्य और निंद्रा आना, धैर्य का अभाव, क्रूरता का आचरण, परमात्मा, पुनर्जन्म के आस्तित्व में अविश्वास, बुरा आचरण करना, दुसरो से धन और पदार्थ मांगने की प्रवृति होना, और किसी कार्य को बिना सावधानी के करना, तमोगुण प्रधान मनुष्य के लक्षण है| मनुष्य की आत्मा किसी कार्य को करते हुए लज़्ज़ा का अनुभव करे वो सब कार्य तमोगुण का लक्षण है|  

अब प्रश्न ये उठता है कि तमोगुण की प्रधानता कितनी है उसके अनुसार ही उसके लक्षण और कर्म होते है और परजन्म भी प्राप्त होता है| जिसे गौण गतियाँ कहा जाता है| जो इस प्रकार है| 

चारणाश्च सुपर्णाश्च पुरुषाश्चैव दाम्भिकाः | 

रक्षांसि च पिशाचाश्च तामसीषूतमा गतिः || 

उत्तम तमोगुणी जो उत्तम तमोगुणी होते है वे कविता या दोहा बनाकर मनुष्य की प्रशंसा करते है, अपने आप अपनी प्रशंसा करने वाले भी होते है, राक्षस जो हिंसक होते है, पिशाच जो अनाचारी, मद्यपान और मलिन रहते, और सुन्दर पक्षी का भी जन्म पाते है|  

हस्तिनश्च तुरंगांश्च शूद्रा म्लेच्छाश्च गर्हिताः | 

सिंहा व्याघ्रा  वराहाश्च मध्यमा तामसी गतिः || 

मध्यम तमोगुणी जो मध्यम तमोगुणी होते है वे हाथी, घोड़ा, सिंह, शेर, वराह और शूद्र का जन्म पाते है|

स्थावराः कृमिकीटाश्च मत्स्याः सर्पाः सकच्छपाः | 

पशवश्च मृगाश्चैव जघन्या तामसी गतिः || 

. अधम तमोगुणी- जो अत्यन्त तमोगुणी होते है वे वृक्ष, कृमि (सुक्ष्म जीव), कीड़े, मतस्य, सर्प, कछुआ, पशु और मृग का जन्म पाते हैं| 

विशुद्ध मनुस्मृति के इस ज्ञान से हम जान सकते है कि हमारे अंदर कितना तमोगुण प्रधान है| और इससे यह भी पता लगा सकते है की हम अपने जीवन को किस ओर ले जा रहे है और उसके क्या परिणाम होंगे|

देवत्वं सात्विका यान्ति मनुष्यत्वं च राजसाः | 

तिर्यक्त्वं तामसा नित्यमित्येषा त्रिविधा गतिः || 

इस प्रकार सत्वगुणी मनुष्य परजन्म में दिव्य गुणो से युक्त विशेष मनुष्य का जन्म पाते है| रजोगुणी मनुष्य साधारण मनुष्य का जन्म पाते है और तमोगुणी मनुष्य पशु-पक्षी, किट-पतंग, और वृक्ष-वनस्पति जन्मो को प्राप्त करते है| 

उम्मीद  करते है कि मेरे लेख सत्वगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी मनुष्य के लक्षण बताने में सक्षम रहे है और ये भी बताने में सक्षम रहे कि कौन से अच्छे कर्म हमे करने है ताकि हम परजन्म में साधारण मनुष्य, पशु पक्षी, किट पतंग, वनस्पति और सूक्ष्म जीव का जन्म न ले| नहीं तो हमारे कर्मो के परिणाम हमे भुगतने पड़गे और फिर हम जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्त नहीं होंगे| क्यों न हम सब ऐसे कर्म करे जिससे हम सब दिव्य गुणों  के मनुष्य का जन्म पा सके और मनुष्य जन्म को सार्थक कर सके| कोशिश हमें ही करनी है संसार अपने आप सुधरेगा नहीं | 

~~ विशुद्ध मनुस्मृति 


Your's Sincerely

Purnima Ghai


References:

Book: Vishudh Manusmriti


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नमस्कार ! विवेक चूड़ामणि भगवान श्रीशङ्कराचार्य के ग्रंथो में एक प्रधान ग्रन्थ है |  हमे बाल्यावस्था से यही सिखाया जाता हैं कि पूजा-पाठ, शुभ क...