रविवार, 21 अगस्त 2022

विवेक चूड़ामणि: भगवत कृपा क्या है ?

 



नमस्कार !

विवेक चूड़ामणि भगवान श्रीशङ्कराचार्य के ग्रंथो में एक प्रधान ग्रन्थ है | 

इस सूत्र को जितना मेरी बुद्धि समझ पायी उसका उल्लेख किया है | मै कोई ज्ञानी नहीं हूँ बस सत्य को जानने की जिज्ञासा रखती हूँ |  

आशा करती हूँ आप सब सकुशल होंगे | जैसा आपने ऊपर पढ़ा है कि ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य तत्त्व, मुमुक्षत्वं, और महान पुरुषो का साथ हमे मिल ही नहीं सकते | तीनो को पाना बहुत कठिन है | 

जब मैंने यह पढ़ा तो विचार आया अगर इनको पाना इतना दुर्लभ है तो मै भाग्यशाली हूँ यानी मुझपर ईश्वर की कृपा है की मै मनुष्यत्व से परिपूर्ण हूँ | लेकिन फिर एक विचार और आया की क्या मनुष्य तत्त्व का मतलब मनुष्य शरीर पाने से है ? तब ज्ञान हुआ की मनुष्य तत्त्व का वास्तविक अर्थ है मनुष्यो के लिए आवश्यक और उपयुक्त गुणों के होने की अवस्था या भाव | माने मनुष्य का हृदय मानवता से परिपुर्ण होना | और मानवता का अर्थ तो हम सब जानते है | इसका मतलब ईश्वर ने इस मनुष्य को ही मानव जाति, अन्य जीवो और इस ग्रह की जिम्मेदारी दी है | परन्तु  सोचिये एक तो मनुष्यत्व इतना दुर्लभ है और मिलने के बाद भी यदि हम वो कार्य नहीं कर रहे है जिसके लिए ईश्वर ने हमे भेजा तो क्या हम सच में ईश्वर को पूज रहे है ?

अब बात करते है मुमुक्षत्वं (मुक्त होने की इच्छा) की | अब आप पूछेंगे किससे मुक्त होना है ? तो मुक्त होना है हमे अपने भय, मोह और जन्म मरण से | हमारे दुखो का कारण ही भय, मोह और हमारे बुरे विचार है | और सत्य यह है कि मनुष्य जीवन ही हमे भय और मोह से दूर करेगा, हमारी मृत्यु नहीं | जब हम इस बात को समझ जाते है तब हम इस जीवन की गहराई को समझ पाते है | और समझ पाते है कि इसका आरंभ होगा तो हमारे द्वारा ही | तब ही हमारी आध्यात्मिक यात्रा शुरू होती है | 

मनुष्य इस बहुमूल्य जीवन को चिंता में बिताये या चिंतन में यह है तो उसी के हाथ में | सत्य यह है कि अज्ञान और भौतिकता में फॅसे रहने से पीड़ा अधिक होती है | इसलिए मनुष्य को प्र्त्येक क्षण चिंतन करते रहना चाहिए | तो शुरुवात अभी से कीजिये | और आध्यात्मिक मार्ग पर चलिये और जीवन का एक मात्र उद्देश्य पाइये जो है मुक्ति | 

अब बात करते है महापुरुषों का साथ | देखिये आपके माता पिता ने आपको सीख दी होगी की अपनी संगति सदा अच्छी रखना | सदा उत्तरदायी और सदाचारी मित्र बनाना | तो सोचिये जब सदाचारी और उत्तरदायी मित्रों के साथ से हमारा जीवन सरल बन सकता है तो सोचिये महापुरुषों का साथ तो हमे ज्ञानमय कर सकता है और हम इस संसार में रहते हुए भी अध्यात्म की मार्ग पर चल मुक्ति पा सकते है |  

मेरा ऐसा मानना है कि हमारे जीवन का कोई ना कोई उद्देश्य है इसलिए ईश्वर के दिये इस मनुष्य रूपी शरीर और जीवन का आदर कीजिये | तत्पचात अगर आपकी प्रकृति सात्विक भी है तो उसका घमंड नहीं उसे ईश्वर का वरदान समझिये | अपने भीतर झांक उस उद्देश्य को खोज उसको पूर्ण कीजिये और मुक्ति की और बढ़िये | 

इसी के साथ मेरा ऐसा मानना है कि जीवन में हमे कृतज्ञता जरूर दिखानी चाहिए क्यूंकि कृतज्ञता दिखाने से जीवन में संतोष और आनन्द की वृद्धि होती है, और हमारा सत्व बढ़ाता है | संतोष और आनन्द का भाव मुक्ति के मार्ग पर चलने के लिए बहुत सहायक होता है | जब भी आपको दुःख की अनुभूति हो तो समझ जाइये ईश्वर आपको अपनी छाया में आने को कह रहा है इसलिए चिंतन करना शुरू कर दीजिये और अध्यात्म से जोड़िये | शायद यही कारण है कि सच्चे लोगो को ज्यादा दुःख होता है क्यूंकि ईश्वर बार बार उन्हें पुकार रहा है और वो सुन नहीं पा रहे | कही तो त्रुटि हमसे हो रही है जिसे वो सही करने को कह रहा है और इसका पता तो हमे चिंतन करने से ही मिलेगा | विश्वास कीजिये वो कभी आपको अकेला नहीं छोड़ता | हम से अधिक वो हम पर दृष्टी रखता है |  


ॐ नमः शिवाय 

डॉ पूर्णिमा घई   



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मंगलवार, 2 अगस्त 2022

अध्यात्मिक सुविचार






नियत का अर्थ हम सब जानते है आम भाषा में कि "सोच" या "विचार "  
लेकिन एक दिन मन में प्रश्न आया कि हमारी सोच की जड़ कहा है ? मतलब ये कहाँ से उत्पन होती है, तो जबाब आया कि हमारी मन की स्थिति कैसी है ? मतलब हमारे कैसे भाव है ? इन्ही भावों से हमारी सोच बनती है और जैसी सोच बनती है वैसे ही कर्म हम करते है और उन्हीं किये हुए कर्मों से हमारा जीवन बनता है |और जीवन में तो सब ही आ जाता है, जैसे हमारा स्थूल और सूक्ष्म शरीर, हमारे रिश्ते, हमारी जीवन शैली, ईश्वर और प्रकृति के प्रति समर्पण  

तो देखा जाए तो हमारी ज्ञानेंद्रिय से उत्पन हुए  या कई जन्मो के इकठे हुए हमारे संस्कार से उत्पन हुए भाव ही हमारी सोच बनाकर हमारा जीवन चला रहे है | इसलिए अगर हमारे भाव सत्वगुणी नहीं है तो, ये हमारे हृदय में विराजमान ईश्वर को काले बादलो की भाती घेर लेते है | और हम दुर्भाग्य की और अग्रसर हो जाते है | लेकिन अगर हमारे भाव सत्वगुणी है तो हम ईश्वर के समीप पहुँच अपने सौभाग्य के रचियता बनते है | 

इसलिए हमे हमारा जीवन सत्वगुण के अभाव में आये भाव रुपी काले बादलो को हटाने की कोशिश में निकलना शुरू कर देना चाहिये तभी हम कह सकते है कि ईश्वर हमारा जीवन चला रहा है और वो ही एक इंसान के लिए सौभाग्य की बात है |  

जीवन को अभी में इतना ही समझ पायी हूँ | 


डॉ. पूर्णिमा घई


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विवेक चूड़ामणि : क्या पूजा पाठ और शुभ कर्म करने से मुक्ति मिलती हैं ?

नमस्कार ! विवेक चूड़ामणि भगवान श्रीशङ्कराचार्य के ग्रंथो में एक प्रधान ग्रन्थ है |  हमे बाल्यावस्था से यही सिखाया जाता हैं कि पूजा-पाठ, शुभ क...